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ग़रीबी की गहरी खाई को लांग नुरुल हसन भारत मे कम उम्र के आईपीएस बने!!  
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तमाम उम्र निर्धनता के नश्तर से घायल होते  नुरुल हसन अब है महाराष्ट्रा पुलिस में एएसपी !!!

ये कहावत हमेशा हक़ीकत शाबित होती रही है   जिसे मैंने भी अपनी ज़िन्दगी में आज़माकर देखा है  जब बन्दा बुलन्दी पाने का सच्चे मन से ईरादा कर लेता है तो मख़लूक़ ए खुदा मुक़म्मल क़ायनात को उसके ताबे कर देता है और उसकी मदद के लिए खुदा खुद हर जगह मौज़ूद खड़ा रहता है बशर्ते कि बन्दे की नीयत नेक़ हो और ईरादा इंसानियत के आँसुओं को पोछने का हो तो फिंर हर एक क़दम पर रहो के रोड़े रोने लगेंगे और बिगाड़ने वाले हाथ मल कर मायुश हो उठेंगे ऐसे ही एक क़ाबिल हिंदुस्तानी की सफ़लता की कारगुज़ारी का क़िस्सा पेश-ए-नज़र है। 

 
बरेली:  बरेली के रहने वाले एक ग़रीब बाप का ग़रीब बेटा नुरुल हसन। एक वक़्त था जब नुरुल हसन मूफ्लिसी की चपेट न्यूज पेपर पढ़ने के लिए ढाबे का चक्कर काटते थे। गरीबी की वजह से उनके घर पर न्यूज पेपर नहीं आ पाता था, लेकिन निर्धनता में ज़िन्दगी बसर करने वाले नुरुल को पढ़ने- लिखने का बचपन से जुनून था। उन्हें ज्यादा से ज्यादा नॉलेज गेन करने का शौक था। आज वही नुरुल हसन न्यूज पेपर्स की सुर्खियां बटोर रहे हैं। उन्होंने यूपीएससी में ऑल इंडिया 625 रैंक हासिल की है। वे ओबीसी कैटेगरी की नॉन क्रिमीलेयर में आते हैं। उन्होंने आईपीएस के लिए क्वालीफाई कर लिया है।

नादान उम्र से ही नुरुल निर्धनता के साए में रहे!

नुरुल का बचपन बेहद ही गरीबी में बीता, लेकिन उनकी मेहनत कभी संसाधनों की मोहताज नहीं रही। मूलरूप से पीलीभीत के रहने वाले नुरुल के पिता शमशुल हसन पीलीभीत कचेहरी में चुतर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। वे तीन भाई हैं। उनके पिता की इतनी आमदनी भी नहीं थी कि वे अपने तीनों बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में अच्छी शिक्षा दिला सकें। नुरुल ने अपनी 8वीं तक की पढ़ाई ब्लॉक अमरिया के गांव हररायपुर स्थित के परिषद विद्यालय से की। इसके बाद सरकारी स्कूल से हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अपने परिवार के साथ बरेली आ गए। उनके पिता का ट्रांसफर बरेली की कचेहरी में हो गया। नुरुल ने इंटर एमबी इंटर कॉलेज से किया। संसाधनों की भारी कमी के बावजूद वे थ्रू आउट टॉपर रहे।

मेहनत ने निखारा है नसीब नुरुल का

नुरुल ने जो मुकाम आज हसिल किया है, उस सफलता का एक ही मंत्र है कड़ी मेहनत। इंटर के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बीटेक किया। उसके बाद एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करने के बाद भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर के नरोरा स्थित डिपार्टमेंट ऑफ अटॉमिक इनर्जी में बतौर साइंटिस्ट नियुक्त हुए। उन्होंने बड़े ही संघर्षो के साथ यह मुकाम हासिल किया। नुरुल बताते हैं कि जब वे बरेली आए थे तो एजाज नगर गोटिया के मलिन बस्ती में एक छोटे से किराए के कमरे में परिवार के साथ रहते थे। उन्हें सिर्फ पढ़ाई का ही जुनून सवार था। दिन रात केवल पढ़ाई ही करते थे। यहां तक कि उनके मकान मालिक ने केवल इसलिए रात में पढ़ाई करने से टोकने लगे कि बिजली का बिल ज्यादा आएगा, लेकिन नुरुल के लक्ष्य के आगे कोई भी संसाधन आड़े नहीं आया। वे लैंप और मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करते नहीं थकते थे।

अब नुरुल ग़रीबी के गाल पर मार सकते हैं तमाचा!!

नुरुल न केवल अपना ही लक्ष्य साध रखा था बल्कि अपने परिवार का सहारा भी बनना चाहते थे। बीटेक करने के बाद उन्होंने अपने दोनों भाइयों की पढ़ाई का जिम्मा भी अपने हाथ ले लिया। उनके एक भाई जहीरुल हसन ने अभी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की है। वहीं दूसरे भाई वसी हसन ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहे हैं। आज नुरुल के इस कामयाबी पर न केवल पूरे परिवार में खुशी की लहर है बल्कि उनके माता- पिता का सीना भी फख्र से चौड़ा हो गया है।

नुरुल यूथ को करते हैं इंस्पायर और देते है हौसला सफ़लता के शिखर तक जाने का!!

नुरुल किसी भी ऐसे यूथ को इंस्पायर करते हैं जो संसाधनों की कमी के आगे घुटने टेक देते हैं। आई नेक्स्ट की विशेष बातचीत में नुरुल ने बताया कि यदि आप में कुछ कर गुजरने का जुनून है, कड़ी मेहनत करने का माद्दा रखते हैं तो सफलता आपके कदम चूमती है। चाहे वह किसी भी धर्म का भी क्यों न हो। मेहनत के आगे भेदभाव नहीं टिकता। नूरूल ने बताया कि उन्होंने सेकेंड अटेंप्ट में यह कामयाबी हासिल की है। इसके लिए उन्होंने कोई कोचिंग नहीं की। नरोरा स्थित साइंटिस्ट नियुक्त होने के बाद से ही उन्होंने सेल्फ स्टडी शुरू कर दी थी। अपनी रेगुलर पढ़ाई और सतत प्रयास की वजह से ही वे कामयाब हुए हैं। 

अब नुरुल ने देशभगती के लिए कमर कसली है वो  महाराष्ट्रा के एएसपी  बन चुके है!!! नुरुल हसन ने पहली बार स्वतंत्र रूप से नांदेड़ के धर्माबाद में अडिशनल सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस के रूप में पहला प्रभार संभाला है जिसके बाद उन्हें फ़ेसबुक और व्हाट्सएप पर शुभकामनाएं मिल रही हैं, दोस्तो हम हिंदुस्तानी मुस्लिम है और हमारे मुल्क़ में क़ामयाबी की सीढ़िया महनत और क़ाबिलियत के दम से चढ़ि जाती है। ये वक़्त एक बर्फ़ की सिल्ली की तरह है जो दिन ब दिन लम्हा दर लम्हा घुलते घुलता है और घुलता चला जा रहा है। हमे चाहिए कि अपने और अपने बच्चों के वक़्त को ज़ाया न जाने दे बर्बाद न होने दे नमाज़ों की पाबंदी करते हुए स्कूली तालीम पर ज़ोर दे और एक क़ाबिल हिंदुस्तानी बनकर देश व समाज की खिदमत कर अपने परिवार और देश का हक़ अदा करें! अल्लाह करे हर ग़रीब घर मे नुरुल हसन की तरह औलाद पैदा हो। 






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