हैदराबाद


   उमर वो बहादुर सहाबी थे जिनके ईमान लाने के बाद मुसलमानों ने पहली बार काबा में नमाज़ अदा की थी
हैदराबाद
फ़ज़ाइल-ए-कुरआन

      किस तरह हज़रत ऊमर (रज़ि) ईमान में दाख़िल हुए!

     अल्लाह ने अज़बाब बनाकर उमर के दम से दबते हुए दिन को दुनिया के सामने लाया था!!! 

   उमर वो बहादुर सहाबी थे जिनके ईमान लाने के बाद मुसलमानों ने पहली बार काबा में नमाज़ अदा की थी


मज़हब-ए-ईस्लाम को अल्लाह ने अपने नबी (सल्ल) पर मुक़म्मल नाज़िल फ़रमाया और उस इस्लाम को दुनिया के कोने कोने तक पहुचाने के लिए सहाबाओं का लश्कर भी उस दौर में खड़ा कर दिया था उन तमाम जांनिसार सहाबीयों में सबसे बहादुर सबसे ताक़तवर सबसे जलाली सबसे ज़्यादा इंसाफपरस्त हज़रत उमर फारूक (रज़ी) थे उमर किस तरह इस्लाम मे दाख़िल हुए?उस ख़ास वाक़िये 
को हम दोहराते हैं 

24 साल की उम्र में हाथ मे तलवार लिये हुए मक्का का सबसे बहादुर नौजवान हज़रत अमीर हमज़ा के इस्लाम लाने की वजह से गुस्से में हज़रत मोहम्मद सल्लाहु अलय्ही वसल्लम को क़त्ल करने के लिये निकले थे।जोश ज़ज़्बा गुस्सा जुनून सर पर चढ़ा हुआ था कि मोहम्मद ने तो सारे मक्का को उनके दीन से फेरना शुरू कर दिया है।आंखों में खून उतरा हुआ है तलवार लहराते हुए चले जा रहे हैं की अचानक रास्ते में नुऐम बिन अब्दुल्लाह मिले और उमर को गुस्से में गुज़रते देख अर्ज़ किया  किधर जारहे हो ऐ उमर? जिस पर उमर ने जवाब दिया हमारे बुतों को गाली देने वाले इस्लाम को फैलाने वाले को मारने जारहा हूँ। उमर की बात सुन नुऐम बिन अब्दुल्लाह ने मुस्कुरा कर कहा,उमर ज़रा आपको पहले अपने घर की भी तो फिक्र कर लेनी चाहिए  थी,हज़रत उमर की गैरत बड़ी मशहूर है तो उन्होंने  गुस्से में पूछा क्या कहना चाहते हो साफ़ साफ़ बताओ , जिस पर हज़रत नुऐम ने जवाब दिया उमर तुम्हारी बहन फातिमा ने भी तो इस्लाम कुबूल कर लिया है और तुम्हारे बहनोई भी साथ मे मुसलमान होगए हैं।
इतना सुनना था कि उमर और भी ज़्यादा गुस्से में आ गए और तलवार हाथ मे लिये हुए अपना रुख बदल कर  सीधे अपनी बहन बहनोई के घर की तरफ कर लिया ,जब दरवाज़े पर उमर पहुंचे तो अंदर से क़ुरआन पढ़ने की आवाज़ आरही थी।उस्ताद उमर की बहन को क़ुरआन पढ़ा रहे थे।हज़रत उमर ने ज़ोर ज़ोर से दरवाज़े पर दस्तक दी,दस्तक के अंदाज़ से बहन समझ गई कि यह उमर रज़िअल्लाहु अन्हु के हाथों की दस्तक लगती है तो उन्होंने अपने उस्ताद को छुपा दिया।और फिंर जैसे ही दरवाज़ा खोला तो उमर ने गुस्से में पूछा सुना है तुमने भी अपना दीन छोड़ दिया ?अपने बाप दादा के दीन को छोड़ दिया है इतना कहकर अपनी बहन को गुस्से में मारना शुरू कर दिया,यहां तक कि उमर की बहन लहूलुहान हो गई ।वह भी हिम्मत के साथ उमर के सामने खड़ी रही और एक जुमला बड़ी बहादुरी से कहा ऊमर अगर तुम खत्ताब के बेटे हो तो मैं भी खत्ताब की बेटी हूँ।जो करना है करलो अब मोहम्मद सल्लाहु अलैय्ही वसल्लम का दामन हम नही छोड़ेंगे।

जब हज़रत ऊमर ने हिम्मत और बहादुरी देखी कि एक औरत बहादुरी से डटी हुई है तो उनके दिल मे ख्याल आया कि वह कौनसी ताक़त है जिसने इसको इतना बहादुर बना दिया है। फिंर बहन के बहते खून को देख उमर का गुस्सा थोड़ा कम हुआ और हज़रत ऊमर ने अपनी बहन से कहा वो जो तुम पढ़ रहे थे मुझे भी सुनाओ,बहन ने कहा ऐसे नही पहले तुम्हें ग़ुस्ल करना होगा, बहन की बात को मान पहले उमर ने ग़ुस्ल किया ,जब ग़ुस्ल करके बैठ गए तो बहन ने जो उस्ताद छुपे हुए थे  उन्हें सामने बुलाया और उमर को क़ुरआन की आयत पढ़कर सुनाई जिसे सुनने के बाद हज़रत ऊमर का दिल पसीजता चला गया आंखों से आँसू जारी होगए,ज़ज़्बात बहने लगे,फिर हज़रत ऊमर बोले मुझे भी मोहम्मद (सल्ल)से मिलवाओ।मेरी सारी जिंदगी खराब होगई मैंने ज़िंदगी के 24 साल खराब कर दिये।मुझे मुहम्मद सल्लाहु अलैय्ही व्सल्लम के पास ले चलो।हज़रत ऊमर अपने बहनोइ के साथ आगे बढ़ रहे हैं कि सफा पहाड़ी पर हज़रत अरक़म का मकान था जहां मुसलमान छुपकर दीन सीखा करते थे,जो इस्लाम की पहली दर्सगाह थी।किसी ने हज़रत ऊमर को दरवाज़े की दरारों से आता देख लिया कि उमर आरहे हैं,तो सबको बताया कि ऊमर आरहे हैं,हज़रत ऊमर की बहादुरी के चर्चे सारे मक्का में मशहूर थे,हज़रत अमीर हमज़ा ने कहा अगर अच्छे इरादे से आये हैं तो स्वागत करेंगे,उनको आने पर मुबारकबाद पेश करेंगे।लेकिन अगर बुरे इरादे से आये हैं तो उनकी तलवार से उनकी गर्दन काट देंगे,जब दरवाज़ा खुला और उमर अंदर आये,तो हज़रत मोहम्मद सल्लाहु अलैय्ही व्सल्लम ने गले मे पड़े हुए कपड़े को झटका देकर पूछा क्या अब तक वो वक़्त नही आया कि तुम इस्लाम कुबूल कर लो,बस झटका देने की बात थी कि हज़रत ऊमर ने कहा हुज़ूर वो वक़्त आगया है,और हज़रत ऊमर की ज़बान पर कलिमा ऐ तौहीद जारी होगया।दार अरक़म में बैठे हुए तमाम मुसलमानों ने बुलन्द आवाज़ से नारा तकबीर अल्लाहु अकबर के नारे बुलन्द कर दिये।मक्के की वादियाँ गूँज उठी,फिर हज़रत उमर  ईमान लाने के बाद पहली बात जो हुज़ूर से करते हैं,कि या रसूलल्लाह क्या हम हक़ पर नही हैं??हुज़ूर ने फरमाया हम हक़ पर हैं।फिर कहा क्या अल्लाह का दीन सच्चा नही है? हुज़ूर ने जवाब दिया अल्लाह का दीन सच्चा है।फिर कहा आप अल्लाह के सच्चे रसूल नही हैं क्या?हुज़ूर ने कहा मैं अल्लाह का सच्चा नबी और रसूल हूँ।

फिर हज़रत ऊमर ने कहा हम छुप छूपकर इबादत क्यों करें।कहा चलो काबा शरीफ में चलते हैं।अब मुसलमानों की दो लाइन बन जाती हैं एक के आगे हज़रत अमीर हमज़ा खड़े हुए और दूसरी के आगे हज़रत ऊमर रज़िअल्लाहु अन्हु खड़े हुए।हज़रत मोहम्मद सल्लाहु अलैय्ही व्सल्लम इनके बीच में थे कि यह क़ाफीला चालिस मुसलमानों का मस्जिद हराम में पहुँचा।और पहली नमाज़ खुलकर पढ़ी गई।हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़िअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि ऊमर का इस्लाम लाना इस्लाम के लिये इज़्ज़त था।

उमर तुम से अच्छा कोई और इंसाफ़ करने वाला नही उमर तुमसे अच्छा कोई बहादुर नही उमर तुम से अच्छा कोई मेरा हीरो नही बचपन से आप ही मैरे हीरो हो 
अल्लाह नबी (सल्ल) और आप के सदके में मेरी मुसिबतों को फ़ना कर के उन्हें खुशियों में तब्दील कर दे और मैरे ईमान को मज़बूत कर दे 
आमीन






Comments



( अगली खबर ).