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आख़िरत में होगा हर बुरे और अच्छे किये हुए अमालो का हिसाब
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आखरत

मान लीजिए दो सवाल हैं, जिनका जवाब हमें देना है. पहले सवाल का जवाब अगर एकबारगी ग़लत भी हो गया तो हमें जवाब देने के लिये कई मौक़े और दिये जाएंगे लेकिन दूसरे सवाल का जवाब देने के लिए सिर्फ एक ही मौका मिलेगा. यानी जवाब ग़लत तो सब-कुछ ख़त्म! ज़रा सोचिए कि किस सवाल का जवाब देने के लिए हमें ज़्यादा गौर से सोचना पड़ेगा? दुनिया की मिसाल पहले सवाल की तरह है जिसमें कई मौक़े मिलते हैं और आखिरत की मिसाल दूसरे सवाल की तरह है जिसके लिए सिर्फ एक ही मौका है. पुल-सिरात से जिसका पाँव फ़िसला वो सीधा जहन्नम में.

अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने इर्शाद फ़र्माया, ‘अद्‌ दुन्या सिज्‌नुल्‌ मोमिनीन व जन्नतुल्‌ काफिरीन (तर्जुमा) दुनिया मोमिनों के लिये कैदख़ाना (जैल) और काफ़िरों के लिये जन्नत है.’ (सहीह मुस्लिम : 2956)

अल्लाह तआला और हमारे बीच का जो रिश्ता है वो हमेशा कायम रहने वाला है । ये रिश्ता हमारे इस दुनिया में आने से पहले भी था, हम इस दुनिया में जब तक रहेंगे तब तक रहेगा और इस दुनिया से वापस जाने के बाद भी जब तक अल्लाह तआला हमारी रूह को कायम रखेगा तब भी रहेगा । फिर क़यामत कायम होगी, तमाम मख्लूक के जिस्म फिर से बनाए जाएंगे, भले ही वो सड़-गलकर मिट्टी हो चुके हों या जलाकर राख कर दिये गये हों । अल्लाह तआला अपनी क़ुदरत के ज़रिए उनको फिर से पैदा कर देगा । फिर सबकी रूहें उनके जिस्मों से मिला दी जाएंगी । आमाल के हिसाब से लोगों को जन्नत और जहन्नम में डाला जाएगा । अल्लाह तआला और हमारे बीच का रिश्ता उस वक्त भी कायम रहेगा ।

आज इस दुनिया में जितने भी इन्सान हैं अगर उन सभी को इस दुनिया से हटा दिया जाये तब भी ये रिश्ता कायम रहता है, यानी इस रिश्ते पर इस बात का कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि हम इस दुनिया में अकेले हैं या हमारे साथ और भी बहुत से लोग मौजूद हैं । अब सवाल यह है कि हमारा अल्लाह तआला के साथ रिश्ता क्या है? इसके जवाब में हमें हर वक्त यह बात याद रखनी चाहिये कि अल्लाह हमारा ख़ालिक़ (रचयिता) है; वही अकेला हमारा मालिक (स्वामी) है; वही हमें रिज्क देता है और हमारी ज़िंदगी की तमाम ज़रूरतों को पूरा करता है । वही ज़िंदगी देता है और वही मौत पर कादिर है । इसलिये सिर्फ और सिर्फ वह एक अल्लाह ही हमारा इलाह (हर क़िस्म की पूजा-वंदना का हक़दार) है । इसी रिश्ते से हम उसके अब्द (बन्दे, ग़ुलाम, दास) हैं ।

बन्दा होने की वजह से अपने रब के प्रति हमारे कुछ फ़र्ज़ हैं । सवाल यह भी है कि हम उन फ़ज़ा~ को कितना पूरा करते हैं? इसका हिसाब हमारे इस दुनिया से वापस जाने के बाद आखिरत में होगा । इसलिए बन्दा होने के फ़र्ज को  पूरा करने या न करने का जितना ताल्लुक़ इस दुनिया से है, उससे कहीं ज़्यादा ताल्लुक़ आखिरत से है क्योंकि दुनिया का फ़ायदा या नुक्सान तो सिर्फ उस वक्त तक है जब तक हम इस दुनिया में जिंदा हैं लेकिन आखिरत का फ़ायदा या नुक़सान हमेशा का है क्योंकि वहाँ कभी मौत नहीं आएगी । बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, बल्कि दुनिया के मुकाबले आखिरत का फ़ायदा भी बड़ा है और नुक्सान भी ।

अगर हम अपने रब, एक और सिर्फ एक इलाह, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के प्रति इस फ़र्ज़ को पूरा करते हैं यानी नेक अमल (सद्‌कर्म) करते हैं तो दुनिया और आखिरत दोनों जगह में हमसे भलाइयों का वादा किया गया है । लेकिन हम देखते हैं कि इस दुनिया में नेक काम का बदला कभी-कभी हमें मिलता हुआ नज़र नहीं आता है ।

मान लीजिए हम ये फ़ैसला कर लेते हैं कि हम कभी रिशित नही लेंगे तो इस बात की कितनी उम्मीद है कि दूसरे लोग जो रिशित लेकर ही काम करते हैं वो हमसे रिशित नहीं लेंगे? बज़ाहिर हमें लगता है कि हमें हमारी नेकी का बदला नहीं मिल रहा है लेकिन असल बात यह नहीं है । अगर हम नाजाइज़ तरीक़े से माल न कमाने का फ़ैसला करते हैं तो अल्लाह तआला हमें दुनिया में बहुत सारे आकस्मिक (अचानक आ पड़ने वाले) ख़र्चों से बचा लेगा । जैसे कि ख़तरनाक बीमारियों पर होने वाला महंगा ख़र्च या बच्चों के महंगे शौक वग़ैरह । अगर आप गौर करगें तो पाएंगे कि हराम तरीक़े से कमाने वाले लोग बहुत सारी बीमारियों और दीगर दुनियवी परेशानियों से दो-चार हैं । इसी तरह अगर हम ये फ़ैसला करते हैं कि हम अपने बेटे की शादी में दहेज नहीं लेंगे तो इस बात बहुत उम्मीद है कि इंशाअल्लाह हमारी बेटी का रिश्ता भी ऐसे घराने में हो जाए जो दहेज के लालची न हों । फिर भी कई बार ऐसा होता है कि हमें किसी नेक अमल का फ़ायदा दुनिया में नहीं मिलता । लेकिन फिर भी अल्लाह का वादा सच्चा है । हो सकता है कि हम पर कोई अज़ाब या बड़ी मुसीबत आने वाली थी जो उस नेक अमल की वजह से टाल दी गई । ये नज़र न आनेवाला फ़ायदा है । कहने का मतलब यह है कि हमें नेक आमाल का बदला दुनिया में भी मिलता है और आखिरत में मिलने वाला फ़ायदा तो लाजवाब है । याद रहे आखिरत में नेकी का बदला नज़र आने वाला होगा।

इस दुनिया में जो भी नबी या रसूल आए वो किसी बुरे समाज या कौम को बुराइयों से हटाकर भलाई की तरफ़ मोड़ने के लिए आए थे । वे लोगों के साथ भलाई से पेश आते थे लेकिन बदले में उनको तकलीफें दी जाती थीं । उनकी बात मानकर जो लोग ईमान लाते थे वो भी भलाई से पेश आते थे लेकिन उनको भी नुक्सान उठाना पड़ता था । वो जिस समाज में थे, वो समाज बुरा था । लेकिन हम उन्हीं नबियों की ज़िंदगी का मुतालआ (अध्ययन) करेंतो हम पाएंगे कि जब अल्लाह ने नाफ़ मार्न कौम पर अज़ाब नाज़िल करने का फ़ैसला किया तो उन नबियों और उनके पैरोकार नेक लोगों को उस अज़ाब से बचा लिया। बहुत से वाक़ियात ऐसे भी हैं कि पहले दुःख पाने के बाद उन्हें आराम व चैन नसीब हुआ । कई वाक़िये ऐसे भी हैं कि उनकी नस्लों ने अपने बुज़ुर्गों की नेकियों का फल पाया ।

इसलिए जब हम आखिरत के फ़ायदे को ध्यान में रखेंगे तो किसी फ़र्ज़ को पूरा करने में हमें जिस्मानी तौर पर भले ही कोई मुश्किल उठानी पड़ जाए लेकिन हमारे ज़हन में यह बात होगी कि हमें इस दुनिया में नेकी का बदला मिलता हुआ नज़र आए या न आए पर आखिरत में उसका नेक बदला ज़रूर मिलेगा । यही बात ‘आखिरत पर ईमान’ कहलाती है । मुश्किल वक्त में काम आने वाला दोस्त, हमें उस दोस्त से बेहतर लगता है जो सुख-चैन के दिनों काम आए । याद रखने वाली बात ये है कि एक ही अमल को करने का अज्‌र हालात के मुताबिक़ अलग-अलग होता है । आज आखिरत की जो चीजें हमारी नज़रों से ओझल हैं, कल क़यामत के दिन वो ज़ाहिर हो जाएंगी । उस वक्त हमें दुनिया में किये गये नेक आमाल की अहमियत का एहसास होगा ।

दुनिया में हमें अपनी ग़लतियों को सुधारने का मौका मिल जाता है लेकिन आखिरत की ज़िन्दगी वो ठिकाना है जहाँ एक बार दाखिल हो जाने के बाद इस बात का हर्गिज़ मौका नहीं मिलेगा कि हम दुनिया में की हुई अपनी ग़लतियों को सुधारकर सामने नज़र आ रहे जहन्नम के अज़ाब से बच सकें । मान लीजिए दो सवाल हैं, जिनका जवाब हमें देना है। पहले सवाल का जवाब अगर एक बार की गलती  भी हो गया तो हमें जवाब देने के लिये कई मौक़े और दिये जाएंगे लेकिन दूसरे सवाल का जवाब देने के लिए सिर्फ एक ही मौका मिलेगा यानी जवाब ग़लत तो सब-कुछ ख़त्म! ज़रा सोचिए कि किस सवाल का जवाब देने के लिए हमें ज़्यादा गौर से साचे ना पड़ेगा? दुनिया की मिसाल पहले सवाल की तरह है जिसमें कई मौक़े मिलते हैं और आखिरत की मिसाल दूसरे सवाल की तरह है जिसके लिए सिर्फ एक ही मौका है । पुल-सिरात से जिसका पाँव फ़िसला वो सीधा जहन्नम में । उस वक्त अगर हम अल्लाह तआला से ये  फ़रियाद करना चाहें कि एक मौका और दे दो, अब हम नेक अमल करेंगे लेकिन ये पुकार अनसुनी कर दी जाएगी । मौत कब आएगी, उसका वक्त हमें पता नहीं है । अगर हमें मौत का वक्त पता होता तो हम उस वक्त तक के लिये बेफ़िक्र और लापरवाह हो जाते । मौत का वक्त पता न होने की वजह से हमें हर वक्त डर लगा रहता है । याद रखिये! दुनिया में की गई लापरवाही हमें आखिरत में बहुत भारी पड़ सकती है ।






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