आष्टा


प्रशासन के लिए इज़्तिमा और सूबे के चुनाव लोहे के चने चबाने जैसे!!!
आष्टा

-अनम इब्राहिम-

[[[[मुस्लिम मददगाह]]]] !!!!

चुनावी माहौल में इज़्तिमे को लेकर पुलिस और जिला प्रशासन को रखना चाहिए इन बातों का ध्यान !!!!

भोपाल के गाल पर रूहानियत की लाली बिखेरते जमात-ए-तबलीग़ के इज़्तिमे के मज़मे का हुज़ूम अनक़रीब ही लाखों की तादाद में दुनिया के कौन कौन से भोपाल में पड़ाव डालने वाला है। इंडोनेशिया,मलेशिया,अमेरिका,जापान,बेरुन,बग़दाद,चीन,श्रीलंका,इजिब,ईरान,इराक़,लीबिया,जॉर्डन,पाकिस्तान,क़तर,सऊदीअरब,टर्की,यमन,सीरिया, सूडान,ओमान व कई मुल्क़ों से दावत-ए-तबलीग़ से जुड़े धार्मिक श्रद्धालुओं के मज़हबी मज़मे जमात की शक्ल में इज़्तिमें में शिरकत करने भोपाल तरफ़ रुख कर चुके है। आलमी इज़्तिमे के मद्देनज़र हिंदुस्तान के कई शहर व छोटे क़स्बों में चलने वाले 40व चार माह के जमाती काफ़िले धीरे-धीरे भोपाल के नज़दीकी शहरों की मस्जिदों में पड़ाव डाल रहे है ! चन्द रोज के बाद से ही मज़हबी महमानों के इस्तकबाल के लिए हज़ारों मुक़ामी खिदमतगार जवानों के ख़ेमे रेलवे स्टेशन,बस स्टेशन और एयरपोर्ट पर मौज़ूद रह कर मुसाफ़िरों को राहत परोसते दिखेंगे। !!!!!1949 में दर्ज़नभर लोगो की गोर-ओ- फिक्र का नतीजा आज लाखों लोग दुनियाभर से इज़्तिमे में शिरकत करने आते है!!! भोपाल: जमात-ए-तबलीग़ के कामो में एक बहतरीन काम लोगो को अच्छाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना है और अल्लाह की इबादतों से जुदा ग़ुमराह भटके हुए बन्दों को अल्लाह से जोड़ना है बस इसी नेक काम कि गोर-ओ-फिक्र को लेकर 1949 में दर्ज़न भर बुज़रुगो ने भोपाल की मस्ज़िद शकूर ख़ाँ के अंदर इज़्तिमे की बुनियाद रखी थी जिसके बाद लगातार 10 साल तक ये इज़्तिमा मस्जिद शकूर खां के अंदर ही भरता रहा हर साल बढ़ती मज़हबी श्रद्धालुनो की तादाद की वजह से मस्ज़िद शकूर खां में जगह की कमी महसूस होने लगी और 1959 में इज़्तिमे का स्थान परिवर्तन कर ताजुल मसाजिद में में शिफ्ट कर दिया गया और ये सिलसिला2002 तक चला बढ़ती भीड़ में बेइंतहां इज़ाफ़ा देख आमजन की सुविधाओं को मद्देनज़र रखते हुए 2002 में इज़्तिमे को शहर के बहार ले जाया गया 2002 ये पहला साल था जब दो बार भोपाल में आलमी इज़्तिमा भरा था! !!!!चुनावी माहौल में इज़्तिमे को लेकर पुलिस और जिला प्रशासन को रखना चाहिए इन बातों का ध्यान !!!! वैसे तो इज़्तिमा हर बार दिसम्बर के महीने में भरता था लेकिन दिसम्बर में बढ़ती ठंड को देख इज़्तिमा ग़ालिबन पिछले 5 वर्षो से नवम्बर के महीने में होने लगा और हर पांच साल के बाद विधानसभा के चुनाव भी हर बार नवम्बर में ही आते है आदर्श आचार सहिंता को देखते हुए प्रशासन को इस दफ़ा दौहरी तैयारियां कर लेनी चाहिए

【1】इज़्तिमे में सड़को के रास्तों से आने वाली लाखों की भीड़ को बायपास के रास्तों से शहर के बाहर की बाहर इज़्तिमागाह तक पहुचाया जाना चाहिए।

【2】 इज़्तिमे में ट्रेन और हवाई सफ़र से आने वाले मुसाफ़िरों के लिए इज़्तिमाह तक शॉर्टकट रास्ता बनाया जाना चाहिए जिससे कि यातायात व्यवस्था चरमराये भी नही और आसानी के साथ मुसाफ़िरों की भीड़ शहर के बाहर इज़तीमागाह तक पहुँच जाए!

【3】इज़्तिमे में आने वाले मुसाफ़िरों की मदद के लिए व्यवस्था बनाने सड़को पर खड़े युवाओं के साथ साथ ट्रैफिक पुलिस का बल भी बढ़ाया जाना चाहिए!

【4】 इज़्तिमागाह के चारो तरफ़ CCTV कैमरे,फायरबिग्रेड,एम्बुलेंस चलित शौचालय और रौशनियों के पुख्ता इंतज़ाम होने चाहिए!

【5】इज़्तिमे के बाहर सड़को पर बाज़ार लगने से रोकना चाहिए जिससे कि भीड़ इज़तीमागाह से बाहर आके सड़को पर ख़रीददारी के लिए उमड़ न सके! वैसे भी खाने व ज़रूरतो के सामान की दुकानें इज़तीमागाह कि सरहदों के अंदर मौज़ूद रहती है!

【6】इज़्तिमे में शिरकत करने आने वाले तक़रीबन एक लाख लोग हर रोज बयान तक़रीर और इज़तीमाई इबादतों को छोड़कर इज़तीमागह से ताजुल मसाजिद के पास मेले में ख़रीददारी के लिए शहर के अंदर दाख़िल होते है ऐसे हालातो में इज़्तिमे के ख़िदमतगार और जुम्मेदारो को गम्भीरता दिखानी चाहिए और प्रशासन को शहर के अंदर ताजुल मसाजिद के पास इज़्तिमे के नाम से भरने वाले फ़र्ज़ी मेले को भरने से पहले ही बंद करवा देना चाहिए जिससे कि व्यवस्था का बैलेंस बरक़रार रह सके !!!






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