मुस्लिम बस्तियां


भोपाल

अब दूसरी दम तोड़ती बाबरी खतरे में!!
भोपाल

बाबरी की शहादत पर दुहाई देते फिंर रहे हो जरा इस वीरान दम तोड़ती जिंदा बाबरी पर क्या कहोगे!! 

भोपाल

बाबरी की शहादत पर रोने वालो पहले अपने दिलों को पुख़्ता नामाज़ी तो बनालो। मुल्क़ के हर सूबों में नाजाने ऐसी कितनी ऐतिहासिक बाबरी की तरह छोटी बड़ी लाखो मस्जिदे मौज़ूद हैं लेकिन वहां जहां हज़ारों की आबादी में से सिर्फ़30 से 40 नामाज़ी ही सर झुकाते हैं और कुछ कस्बो की सो-डेढ़-सो की आबादी वाली मस्जिदों में 10 से 15 नामाज़ी ही हाज़री देने आते हैं। आज भी कई ऐतिहासिक इबादतखाने बेनमाज़ीयों की वजह से धीरे धीरे दम दौड़ते चले जा रहे हैं। राजधानी भोपाल से सटे हुए गांव दिललोत (बैरसिया) के अतराफ़ में एक ऐसा इबादतखाना मौज़ूद हैं जो नमाज़ियों का इन्तेजार करते करते दम तोड़ चुका है। इस इबादतखाने कि बुनियाद मुगलों के दौर के बादशाहो के शासनकाल में रखी गई थी कई दशक पहले तो यह इबादतखाना नमाज़ियों से आबाद था लेकिन आज आस पास के गांव में मुस्लिम आबादी होने के बाद भी यहां कोई झांकने नही आता है वीराने में तब्दील इबादतगाह नमाज़ियों की गैर-मौज़ूदगी का गम बर्दाश्त नही कर पाई और धीरे-धीरे अपना वज़ूद खोते चले गई। हाल ही में इस बेहाल बाबरी को किसी के ढहाने की ज़रूरत नही थी इस कि बर्बादी के लिए अतराफ़ के मुस्लिम ही काफ़ी थे मुगलों के ज़माने की मज़बूत मोटी मोती जर्जर दीवारें छत पर बेआबाद बाबरी की तरह झाड़ियों का झुंड और आसपास का हिस्सा पूरी तरह खचराखाने में तब्दील हो चुका है। तीन दरवाज़े वाली इस वीरान मस्जिद में बदजनावरो का बसेरा है मेम्बर के पास तक जानवर और गंदगी का  अच्छा ख़ासा ढेर लगा हुआ है। बहरहाल हम इस बिना ढहाई हुई मस्जिद की तबाही का ताना क्या अपने आप को देंगे ?? दोस्तो आज फिंर वो ही अल्लमा इक़बाल का शेर याद आ रहा है: 

 

 

 

 

मस्जिद तो बना ली पल भर में इमा की हरारत वालो ने!!

और ये दिल पुराना पापी था बरसों नामाज़ी बन न सका!!!

 

हमे चाहिए कि हमारे अतराफ़ की मस्जिदों को सजदों से आबाद कर के इबादतखानो का हक़ अदा करें और अच्छे कामों का अपनो को हुकूम करे और बुरे कामो से रोकते रहें। हमारे अच्छे और बुरे आमालो से ही हमारे मज़हब कि अच्छी और बुरी छवि बनती है हमे कोई हक नही कि इतने पाकिज़गी भरे मज़हब-ए-इस्लाम को अपनी बदआमालियों से बदनाम करें!!






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