मुस्लिम बस्तियां


भोपाल

औक़ाफ़-ए-अम्मा का नही काम निकम्मा!!!!
भोपाल

औक़ाफ़-ए-अम्मा का नही काम निकम्मा!!!!

इस्लामिक तंजीमो के तबेले थोड़े बहुत गिनेचुने ही मौज़ूद है और उनके खैरख्वाहों पर तोहमतें जड़ना इस मिट्टी की परंपरा है। लोग ख़िदमतगारी के लिए आगे आते गए और मुख़ालफ़त के रिवाज़ हर दौर में उनका इस्तक़बाल करते रहे इस वक़्त भी हाल-ए-दौर कुछ इसी तरह करवटें बदल रहा है वक़्फ़ बोर्ड हो या औक़ाफ़-ए-अम्मा या हो मसाजिद कमेटियां सिलसिलेवार विरोधी विचारधाराओं की ज़ुबानी बेलिबाज़ होकर बदनामी की चपेट में आ ख़ुद को व पूरी क़ौम को रुसवाइयों के कठघरे में ला खड़ा कर दे रही है!!!

आख़िर क्यों खुले हैं लगातार वक़्फ़ बोर्ड़ के ख़िलाफ़ मुख़ालफ़त के मोर्चे???

क्या है हुकूमती हलकों के साए में शहर की इस्लामिक तंजीमो की हक़ीकत?????

क्या है इस्लामिक हुलिए में मज़हबी मिल्कियत के सौदागरो का बाज़ार ????

कौम की रहबरी की चाह है या है दलाली का ज़ुनून????

ईस्लामिक मुहाफिज़ों मुख़ालिफ़ों और मज़हब के सच्चे खैरख्वाहों की शख़्सियतों व दलाली की लाली में लाल पड़ते गालो की गुस्ताखियों और हर एक मज़हबी चादरपोशी में कैद शैतानी फ़ितरतों से..

हर हफ़्ते मुस्लिम मददगाह कराएगा रूबरू !

 

हमदर्द और हमआस्तीन के सांपों के बीच का फ़र्क जाने और पढ़ते रहे मुस्लिम मददगाह






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