السلام علیکم

मज़हब-ए-ईस्लाम हक़ है और ईस्लाम में इबादतगाहों के एहतराम की ख़ास फ़ज़ीलत का कसरत से ज़िक्र है मस्ज़िद खुदा का घर है हर एक ईमान वाले के नज़दीक मस्जिद ऐसी है जैसे जिस्म में दिल और दिल की हिफाजत देखरेख की जुम्मेदारी हर एक ईमान वाले के दिल मे होना चाहिए हम सब को चाहिए कि अपने अतराफ़ की मुक़ामी मस्जिदों की निगहबानी करे जब आप अल्लाह के घर की देखभाल हिफ़ाजत करेंगे तो अल्लाह आप के घर कि हिफ़ाजत करेगा!!!

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भोपाल


कुल आबादी:उनतीस लाख &मुस्लिम आबादी: छः लाख बयालिस हज़ार छः सो चालीस

मुर्दो पर मेहरबां फ़ेज़ मस्ज़िद के नमाज़ी हर ग़रीब के कफ़न से दफ़न तक का कर रहे इंतेज़ाम!!!*
भोपाल

≈मुस्लिम मददगाह≈
``≈Anam Ibrahim≈```
9425990668


भोपाल: इस मौक़ापरस्त दौर में जहां ज़िन्दगी से जुदा होते ही अपने भी बेगाने हो जाते हैं और जीते जी मुसीबत आने पर सगे भी मुंह फेर पराए बन जाते है ऐसे नफ़सा-नफ़्सी के मतलबी गुज़रते वक़्त में भोपाल के दाता कॉलोनी की मस्ज़िद के चंद नमाज़ीयों ने हर निर्धन,मुफ़्लिश ग़रीबो की मौत मैयत के ख़र्चीले इन्तेज़ामो को पूरा करने का बीड़ा उठाया है। दोस्तो ये कोई आम बात नही है अक़्सर ज़िंदा रहते हुए बेगैरत ग़रीब अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लोगो के सामने हाथ फैला भिक मांग लेते हैं लेकिन गैरतमंद ग़रीब जीते जी किसी के सामने जब हाथ नही फैला पाता है तो भला उसकी मौत के बाद कफ़न-दफ़न की जरुरतों के लिए उसका गैरतमंद परिवार कैसे किसी के सामने हाथ फ़ैला सकता है। बस इसी फ़िकरो में मुब्तिला फ़ेज़ मस्जिद के चंद बुज़रुग नमाज़ियों ने एक मुहिम चला दी कि आसपास अतराफ़ के इलाक़ो में जब भी कोई ग़रीब जरूरतमंद मुस्लिम का इन्तेक़ाल होगा तो उसके क़फ़न से दफ़न का ख़र्चा उन नमाज़ियों का ग्रुप उठाएगा इस नेक काम को अंज़ाम देने वालो में मुक़ामी रिटायर्ड ऑफिसर सैय्यद शाकीर हुसेन व IAS ऑफिसर फ़ेज़ एहमद क़िदवई साहब के ससुर आरिफ खान साहब और डॉ मक़सूद एहमद मुख्य क़िरदार निभा रहे है गोर-ए-तलब है कि फ़ेज़ मस्ज़िद के इर्दगिर्द इलाक़ो में 4सो से ज़्यादा मुस्लिम आशियाने मौज़ूद है शुरू शुरू में जब यहां किसी का इन्तेक़ाल हो जाता था तो मुर्दो का ग़ुस्ल करवाने के लिए भी लोगो का इंतेज़ाम नही हो पाता था लेकिन फ़ेज़ मस्ज़िद के नेक दिल नमाज़ियों की दरियादिली हर दर्द को भांप कर सोहलियतो के रास्ते बनाते चले गई मस्ज़िद के पास बेर व अनार का दरख़्त लगाया गया जहां मुर्दो को ग़ुस्ल कराया जा सके एक बड़ा डीपफ्रीज़र भी लाया गया जिसमें मुर्दे को रखा जा सके बाज़ मर्तबा अगर मुर्दे के रिश्तेदारो को दूर दराज के शहरों से आने में वक़्त लगता है तो उस वक़्त ये डीपफ्रीज़र बड़ा कामगार साबित होता है इसमें कई दिनों तक लाश सड़ती नही है नाही उसमें बॉस बदबू आती है इस डीपफ्रीज़र का ख़ास इस्तेमाल महज़ मुस्लिमो के लिए ही नही है बल्कि सभी धर्म जाती के लोग इसको फिसबिलिल्लाह नीशुल्क अपने घर, हॉस्पिटल ले जा सकते है बस औपचारिकता के तौर पर मस्ज़िद के खिदमतगारों के पास आधार कार्ड व किसी भी स्थाई परिचयपत्र की छायाप्रति जमा करनी पड़ती है साथ ही इन नमाज़ी खिदमतगारों ने पहले से कफ़न-दफ़न में लगने वाली सामग्री खरीद रखी है और मैयत को क़ब्रस्तान पहुचाने के लिए मुत्यु वाहन का भी इंतेज़ाम इस मस्ज़िद के नमाज़ियों द्वारा किया जाता है।

इबरत. फ़ेज़ मस्जिद के खिदमतगारों के जज्बों को जहन में बैठाल हमे भी अपने इर्दगिर्द की इबादतगाहो में इन्सानित को नफ़ा पहुचाने के इंतेज़ाम करना चाहिए चाहे उसकी शुरुवात ठंडा पानी पिलाकर ही क्यों ना कि जाएं दोस्तो ज़रूरतमन्दों की मदद करने की आदत डाल लो इबादत से अगर जन्नत नसीब होती है तो खिदमत से खुद खुदा ही मिल जाता है जब खुदा ही तुम्हारा हो जाएगा तो लाज़मी है उसकी क़ायनात तुम्हारी ही हो जाएगी

 






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